“बिलासपुर: बांकीघाट में अवैध उत्खनन से पहाड़ों का अस्तित्व संकट में, ग्रामीणों ने खनिज विभाग पर लगाए गंभीर आरोप”

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क्या बांकीघाट के पहाड़ बच पाएंगे? प्रशासन और खनिज विभाग की भूमिका पर सवाल

बिलासपुर
ग्राम पंचायत कलारतराई के बांकीघाट क्षेत्र में हो रहे अवैध पत्थर और मुरुम उत्खनन ने स्थानीय ग्रामीणों को प्रशासन और खनिज विभाग के खिलाफ मोर्चा खोलने पर मजबूर कर दिया है। सोमवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ग्रामीणों और समाजसेवी दिलीप अग्रवाल ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए कहा कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो क्षेत्र के पहाड़ों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

ग्रामीणों का सवाल: किसके इशारे पर हो रहा यह अवैध उत्खनन?

ग्रामीणों का आरोप है कि खनिज विभाग ने पहाड़ों से पत्थर उत्खनन के लिए लीज की अनुमति कैसे दी, यह पूरी तरह से समझ से परे है। उनका कहना है कि यह विभाग और क्रेशर मालिकों के बीच मिलीभगत का स्पष्ट उदाहरण है। स्थानीय सरपंच द्वारा बार-बार शिकायत किए जाने के बावजूद किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं हुई।

किसानों और पर्यावरण पर असर

ग्रामीणों ने बताया कि गोयल क्रेशर और महावीर कोलवाशरी द्वारा रेलवे साइडिंग के लिए हजारों ट्रिप मुरुम और पत्थर ले जाए जा रहे हैं। इससे न केवल पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में है, बल्कि आसपास के खेतों और जल स्रोतों पर भी गंभीर असर पड़ रहा है।

क्या NGT के नियमों का उल्लंघन हो रहा है?

ग्रामीणों का यह भी कहना है कि बांकीघाट में राजस्व विभाग, वन विभाग और जल संसाधन विभाग की जमीन पर अवैध उत्खनन किया जा रहा है। इस उत्खनन के लिए ग्राम पंचायत से कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं लिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है, और जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।

प्रशासन की चुप्पी क्यों?

ग्रामीणों ने खनिज विभाग और क्रेशर मालिकों पर राजस्व की करोड़ों रुपये की हानि पहुंचाने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि अधिकारियों की चुप्पी इस अवैध उत्खनन को प्रोत्साहन दे रही है।

ग्रामीणों की मांगें

1. अवैध उत्खनन के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हो।


2. मुरुम और पत्थरों को जब्त किया जाए।


3. पहाड़ों को नष्ट होने से बचाने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं।



प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी गई चेतावनी

ग्रामीणों ने स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो वे एनजीटी और उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे। इसके साथ ही, उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मामले में हस्तक्षेप की अपील की है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

इस मुद्दे पर विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अवैध उत्खनन पर जल्द रोक नहीं लगाई गई, तो क्षेत्र में पर्यावरणीय असंतुलन के साथ-साथ जल स्रोतों का भी क्षरण होगा। यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह तुरंत सख्त कदम उठाए और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करे।

अब सवाल यह है:

क्या प्रशासन अवैध उत्खनन पर कार्रवाई करेगा, या यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?

क्या बांकीघाट के पहाड़ों को बचाने के लिए ग्रामीणों की आवाज सुनी जाएगी?

खनिज विभाग और क्रेशर मालिकों के बीच की मिलीभगत पर कब टूटेगी चुप्पी?


आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन और खनिज विभाग इस गंभीर मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं।

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