शिक्षा संकट: नई शिक्षा नीति 2020 पर बढ़ता विरोध

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भारत में शिक्षा हमेशा समाज के निर्माण और प्रगति का केंद्र रही है। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महापुरुषों ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर नागरिक को समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। लेकिन वर्तमान समय में शिक्षा प्रणाली जिस दिशा में जा रही है, वह चिंता का विषय है। नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) को लेकर छात्रों, शिक्षकों और जनसंगठनों में गहरी नाराजगी है।

पुरानी नीतियों की पृष्ठभूमि:
आजादी के पहले के दौर में शिक्षा को धर्मनिरपेक्ष, वैज्ञानिक और जनवादी बनाने की मांग प्रमुख थी। महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर, और अन्य महान शिक्षाविदों ने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का सपना देखा था, जो केवल ज्ञान प्रदान न करे, बल्कि चरित्र निर्माण में भी सहायक हो। आजादी के बाद, शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने की कई कोशिशें हुईं, लेकिन समय के साथ यह सपना धुंधला होता गया।

नई शिक्षा नीति 2020 की मुख्य चुनौतियां:
NEP 2020 ने शिक्षा को लेकर कई विवादास्पद प्रावधान पेश किए हैं:

1. कॉलेजों को ऑटोनॉमस करना: कॉलेजों को स्वायत्तता देने के नाम पर उन्हें वित्तीय आत्मनिर्भरता की ओर धकेला जा रहा है। इसका सीधा असर यह होगा कि कॉलेजों को अपने खर्च पूरे करने के लिए फीस में भारी बढ़ोतरी करनी होगी।


2. व्यक्तिगत फंडिंग का दबाव: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की ओर से कॉलेजों को मिलने वाला फंड धीरे-धीरे बंद किया जा रहा है। इससे शिक्षा का व्यापारीकरण और निजीकरण और बढ़ेगा।


3. चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम: चार वर्षीय कोर्स और सेमेस्टर प्रणाली को लागू करने से छात्रों पर शैक्षणिक और आर्थिक बोझ बढ़ेगा।


4. पुनर्मूल्यांकन का खत्म होना: सेमेस्टर प्रणाली में पुनःमूल्यांकन की व्यवस्था को खत्म किया जा रहा है, जिससे छात्रों के पास अपनी गलतियों को सुधारने के सीमित अवसर रहेंगे।



आंदोलन और मांगें:
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (AIDSO) और अन्य छात्र संगठनों ने NEP 2020 के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन किया है। इनकी मुख्य मांगें हैं:

1. कॉलेजों को ऑटोनॉमस करने का फैसला वापस लिया जाए।


2. रोजेस्टर प्रणाली को खत्म किया जाए।


3. शिक्षा का पूरा खर्च सरकार उठाए और केंद्रीय बजट का 10% व राज्य बजट का 30% शिक्षा पर खर्च किया जाए।


4. चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम को रद्द किया जाए।



छात्रों की समस्याएं:
सरकार की जनविरोधी नीतियों का परिणाम यह है कि शिक्षा गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। सेमेस्टर प्रणाली और फीस वृद्धि से छात्र मानसिक और आर्थिक दबाव में हैं।

निष्कर्ष:
NEP 2020 के तहत लाए गए प्रावधान न केवल शिक्षा प्रणाली के व्यापारीकरण को बढ़ावा देते हैं, बल्कि छात्रों के विकास में भी बाधा डालते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के नाम पर जो फैसले लिए जा रहे हैं, वे जनसामान्य को और अधिक संकट में डाल सकते हैं। यह समय है कि शिक्षा को व्यापार से अलग रखते हुए इसे समाज के हर तबके के लिए सुलभ और समावेशी बनाया जाए।

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